दोस्तों आज KK Educenter आप सब छात्रों के समक्ष "भारत में हरित क्रांति और उसके प्रभाव" की पूरी जानकरी आपके लिए उपलब्ध करा रहा है. इस पोस्ट के माध्यम से आप “भारत में हरित क्रांति और उसके प्रभाव” के बारे जानकारी हासिल कर पाएंगे जो की आपके आगामी प्रतियोगी परीक्षाओं में काफी मददगार साबित होगा. हमारे इस लेख के माध्यम से विषयों की सूचि , स्थानीय लोगो के कल्याण को बढ़ने के लिए बहुत महत्वपूर्ण है.
कृषि उत्पादकता प्रति हेक्टेयर उत्पादकता और कुल उत्पादकता के रूप में व्यक्त किया जाता है। प्रति हेक्टेयर उत्पादकता की दृष्टि से पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश, राजस्थान का श्री गंगानगर देश में प्रमुख क्षेत्र के रूप में प्रसिद्ध है वहीं महाराष्ट्र और गुजरात के क्षेत्र, कपासी क्षेत्र उत्तर प्रदेश गया और बिहार के आलू उत्पादक क्षेत्र कुल उत्पादकता की दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है। निम्न उत्पादकता के क्षेत्रों में राजस्थान के शेष भाग, आन्ध्र प्रदेश के तेलंगाना एवं रायल सीमा प्रदेश उत्तरी पूर्वी भारत के पर्वतीय एवं पठारी प्रदेश तथा उत्तरी भारत के गढ़वाल पर्वतीय क्षेत्र उड़ीसा के कालाहाड़ी क्षेत्र विशेष रूप से उल्लेखनीय है। दोनों क्षेत्रों के बीच विकास की खाई को पाटने के लिए कई उपाय किए गए हैं। 1961 ई० में IAAP (Intensive Agricultural Area Programme) देश के 114 जिलों में प्रारम्भ किया गया। इसके बाद उन्नत किस्म की बीज, रासायनिक खाद और सिंचाई के ताना बाना से 1967-68 ई० में हरित क्रांति प्रारम्भ की गई। इसे ही पैकेज टेक्नोलॉजी भी कहते हैं। इस तकनीक के द्वारा देश के चयनित जिलों में आरंभिक चरणों में गेहूं और चावल के उत्पादन में वृद्धि के प्रयास किए गए। इसके लिए पंजाब, हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का चयन किया गया। इसका सबसे अधिक प्रभाव पंजाब में देखने को मिला जहाँ गेहूं की प्रति हेक्टेयर उपज 1990-91 में 37.1 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गया जबकि देश का औसत 22.8 क्विंटल प्रति हेक्टेयर था। उसी प्रकार चावल की प्रति हेक्टेयर उत्पादकता में भी वृद्धि दर्ज की गई। उपरोक्त प्रदेशों में नहरों का जाल बिछा था।
1980 में पंजाब में उर्वरकों का उपयोग 130 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर था जबकि असम में 3.5 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, राजस्थान में 9 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर, बिहार में 20 किलोग्राम प्रति हेक्टेयर था। पंजाब तथा हरियाणा में शस्य क्षेत्र के पति 1000, हेक्टेयर भूमि पर क्रमशः 9 तथा 405 ट्रैक्टरों का प्रयोग किया गया। इसकी तुलना में उड़ीसा, असम, मध्य प्रदेश तथा बिहार में क्रमश: 0.2, 0.2 0.8, 1.0 ट्रेक्टर प्रति हजार हेक्टेयर ही प्रयोग किए गए उसी प्रकार पंजाब और हरियाणा में कुल कृषि भूमि के 1 क्रमश: 99% तथा 64.2% भाग की सिंचाई सुविधा उपलब्ध है। इसकी तुलना में बिहार में 32.2% महाराष्ट्र में 14.1% तथा मध्य प्रदेश में 12.6% क्षेत्र को सिंचाई की सुविधा उपलब्ध है। इसके अतिरिक्त पंजाब, हरियाणा क्षेत्र को पूर्वी भारत क्षेत्र के अपेक्षा | सहकारी बैंकों, विपणीय सुविधाएँ अधिक मिली। इस प्रकार पंजाब, हरियाणा, पश्चिमी उत्तर प्रदेश की संरचनात्मक सुविधाएँ उपलब्ध होने के कारण हरित क्रांति का सबसे ज्यादा लाभ मिला। अन्य क्षेत्रों संरचनात्मक एवं अवसंरचनात्मक कारकों के अभाव के कारण निम्न कृषि उत्पादकता के क्षेत्र में तब्दील हो गए हैं।